कली जो दिल की खिली थी मसल गई तारीख़ बहार जैसे ही आई बदल गई तारीख़ जो पौ फटी तो हमें होश आया रात गई फ़रेब आज भी दे कर निकल गई तारीख़ इक और वा'दे का शिद्दत से इंतिज़ार किया तुम्हारे वा'दे की जब भी बदल गई तारीख़ बहुत ग़ुरूर था माज़ी पे आज तक उस को हमारी राह में आई तो जल गई तारीख़ जहाँ भी ज़ेहन-ए-रसा ने क़दम उठाए हैं रिवायतों को ये बढ़ कर कुचल गई तारीख़ कहानियों को हक़ीक़त का रूप दे डाला 'फ़रीद' आप के शे'रों में ढल गई तारीख़