काम बस नाम का नहीं होता नाम कुछ काम का नहीं होता आज की शाम का जो आलम है हर किसी शाम का नहीं होता चैन हद से बढ़ा तो यारों फिर चैन आराम का नहीं होता यूँ तो इस बे-ख़ुदी के मसअले में सब गुनाह जाम का नहीं होता आगे आग़ाज़ का तरीक़ा था अब तो अंजाम का नहीं होता इंतिज़ार आहटों का जितना है इतना पैग़ाम का नहीं होता दर्द तो सिर्फ़ दर्द है के दर्द ख़ास या आम का नहीं होता एक पल मैं ने भी तो बाँधा है प्यार बस राम का नहीं होता हर कोई द्रोपदी बचे इतना हौसला श्याम का नहीं होता