काम आई इश्क़ की दीवानगी कल रात को हुस्न ने बख़्शी मता-ए-दोस्ती कल रात को क़ामत-ए-दिलकश लिबास-ए-सुर्ख़ में थी मेहमाँ मेरे घर इक सुर्ख़ मख़मल की परी कल रात को तमतमाए गाल भीगे होंट चश्म-ए-नीम-वा थी मुजस्सम जैसे मेरी शाइ'री कल रात को वो मिरे शाना-ब-शाना सहन में महव-ए-ख़िराम चाँद के पहलू में जैसे चाँदनी कल रात को नर्म बाँहों से मिरे शानों से कुछ साज़िश हुई पड़ गई गर्दन में मोती की लड़ी कल रात को शब के सन्नाटे में पैमान-ए-वफ़ा बाँधे गए कुछ नए वा'दों ने की जादूगरी कल रात को हर घड़ी 'सूफ़ी' नशात-अंगेज़ लम्हों में कटी ज़िंदगी थी दर-हक़ीक़त ज़िंदगी कल रात को