कम किया हम ने अपनी ज़ात पे ग़ौर हम तो करते हैं काएनात पे ग़ौर तुम ने माने हैं हुक्म ग़ैरों के कब किया है हमारी बात पे ग़ौर मसअले हल न हो सके अपने कर चुके हैं मुज़ाकरात पे ग़ौर बात होती है जब मोहब्बत की करना पड़ता है दिल की बात पे ग़ौर जब भी मिलने की बात करता हूँ करने लगते हैं मेरी बात पे ग़ौर हादिसा फिर न पेश आता हमें ये मुहाफ़िज़ जो करते घात पे ग़ौर