काम कोई तो कभी वक़्त से आगे कर जा ऐ दिल-ए-ज़िंदा मिरे मरने से पहले मर जा साग़र-ए-चश्म को ज़हराब से ख़ाली कर दे और जो भरता है तू पैमाना-ए-हस्ती भर जा तिश्नगी कम हो मगर दूर न होने पाए अपने प्यासे को न सैराब-ए-मोहब्बत कर जा ख़ाक से ता-ब-फ़लक ख़्वाब का फैला दामन कोई कोशिश न कहीं और तमन्ना हर जा तू मुसाफ़िर तिरे किस काम की शोहरत 'सय्यद' ये सख़ावत सर-ए-दहलीज़-ए-रफ़ीक़ाँ धर जा