क्या यही उस का मुदावा न हुआ एक बीमार जो अच्छा न हुआ चार तिनके ही सही जल तो गए क्या मिरे दम से उजाला न हुआ उन की क़ुर्बत ही सही हासिल-ए-ज़ीस्त ये तो अंदाज़-ए-तमन्ना न हुआ है तमन्ना-ए-तुलू-ए-ख़ुर्शीद और अगर फिर भी सवेरा न हुआ पुर्सिश-ए-ग़म तो हुई थी लेकिन हम से इज़्हार-ए-तमन्ना न हुआ लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-मोहब्बत के सबब हम को मरना भी गवारा न हुआ ग़म ने वो बज़्म सजाई 'एहसास' मैं ज़रा देर को तन्हा न हुआ