कम से कम अपना भरम तो नहीं खोया होता दिल को रोना था तो तन्हाई में रोया होता सुब्ह से सुब्ह तलक जागते ही उम्र कटी एक शब ही सही भर नींद तो सोया होता ढूँढना था मिरे दिल को तो कभी पलकों से मेरे अश्कों के समुंदर को बिलोया होता देखना था कि नज़र चुभती है कैसे तो कभी इस के पैकर में निगाहों को गुड़ोया होता जब यक़ीं उस को न पाने का हुआ तो जाना यही बेहतर था कि पा कर उसे खोया होता न मिला कोई भी ग़म बाँटने वाला वर्ना अपना बोझ अपने ही काँधों पे न ढोया होता उस को पूजा न कभी जिस को तराशा 'आज़र' नाम इस तरह तो अपना न डुबोया होता