कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए कोई मेरा भी बुरा चाहने वाला हो जाए इसी मजबूरी में ये भीड़ इकट्ठा है यहाँ जो तिरे साथ नहीं आए वो तन्हा हो जाए शुक्र उस का अदा करने का ख़याल आए किसे अब्र जब इतना घना हो कि अँधेरा हो जाए हाँ नहीं चाहिए उस दर्जा मोहब्बत तेरी कि मिरा सच भी तिरे झूट का हिस्सा हो जाए बंद आँखों ने सराबों से बचाया है मुझे आँख वाला हो तो इस खेल में अंधा हो जाए मैं भी क़तरा हूँ तिरी बात समझ सकता हूँ ये कि मिट जाने के डर से कोई दरिया हो जाए बस इसी बात पे आईनों से बिगड़ी मेरी चाहता था मिरा अपना कोई चेहरा हो जाए बज़्म-ए-याराँ में यही रंग तो देते हैं मज़ा कोई रोए तो हँसी से कोई दोहरा हो जाए