कमाल-ए-इश्क़ में जज़्ब-ओ-असर की बात न कर उन्हीं की राह में खो जा ख़बर की बात न कर तिरी तलाश में मंज़िल की कोई क़ैद नहीं हरम की दैर की दीवार-ओ-दर की बात न कर कलीम देख चुके हुस्न-ए-यार के जल्वे ये उन का बख़्त है ज़ौक़-ए-नज़र की बात न कर महक महक उठीं गलियाँ जो खुल गए गेसू रियाज़-ए-हज़रत-ए-ख़ैरुल-बशर की बात न कर शुऊ'र उसी का तो अर्श-ए-बरीं की ज़ीनत है फ़क़त रसाई-ए-पा-ए-बशर की बात न कर तुलूअ'-ए-माह-ए-अरब से हैं दो-जहाँ रौशन ज़िया-फ़ुरोज़ी-ए-शम्स-ओ-क़मर की बात न कर चमन-बदोश है हर ज़र्रा अर्ज़-ए-तैबा का बहार-ए-गुलशन-ए-गुलहा-ए-तर की बात न कर बहार-ए-मुसहफ़-ए-नातिक़ के देखने वाले इरम की दहर की बर्ग-ओ--शजर की बात न कर हमारे अश्क-ए-नदामत का कोई मोल कहाँ ये नज़्र-ए-नक़्द है लाल-ओ-गुहर की बात न कर जहाँ में चार सू फैला हुआ है बुग़्ज़-ओ-इनाद अँधेरी रात में नूर-ए-सहर की बात न कर 'शफ़ीअ'' उम्मीद है बख़शाएँगे वही मुझ को ब-जुज़ अता-ए-शह-ए-बहर-ओ-बर की बात न कर