कमाल रखते हैं अपनी वही जवानी में लगा के आग जो बैठे हुए हैं पानी में गए दिनों के दिखाई दिए सभी मंज़र रफ़ाक़तों से जुड़ी हर किसी निशानी में तमाम ख़्वाब मिरी ज़िंदगी के बह निकले तिरी जुदाई में अश्कों की इस रवानी में जिसे भी देखिए रंज-ओ-अलम में डूबा है अजीब दर्द है हर शख़्स की कहानी में अकेली मैं ही नहीं हूँ वफ़ा के ज़िंदाँ में बहुत से और हैं इस क़ैद-ए-राएगानी में मुझे तो दश्त-ए-तमन्ना की धूप काम आई ऐ 'हादिया' मिरी मिट्टी की साएबानी में