कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला मुझे इसी से ये अंदाज़-ए-आशिक़ाना मिला जबीन-ए-शौक़ को आसूदगी नसीब हुई सर-ए-नियाज़ को जब तेरा आस्ताना मिला तमाम उम्र सहारों की जुस्तुजू में रहा वो बद-नसीब जिसे तेरा आसरा न मिला कमी न थी मिरी दुनिया में आश्नाओं की सितम तो ये है कोई दर्द-आश्ना न मिला सनम-कदों में तो असनाम जल्वा-फ़रमा थे ख़ुदा के घर में भी मुझ को कहीं ख़ुदा न मिला तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली मिरी वफ़ाओं का मुझ को कोई सिला न मिला चमन में रह के भी 'आतिश' ख़िज़ाँ-नसीबों को कभी बहार का पैग़ाम-ए-जाँ-फ़ज़ा न मिला