कमर कसो तो मसाफ़त की आबरू रखना

कमर कसो तो मसाफ़त की आबरू रखना
जो चल पड़ो तो न मंज़िल की आरज़ू रखना

बिखर रहा है सभी कुछ अगरचे दुनिया में
हयात-ए-नौ की मगर फिर भी जुस्तुजू रखना

जहाँ में लोग फ़क़त ज़िंदगी निभाते हैं
बड़ा कमाल है जीने को ख़ूब-रू रखना

अगर निगाह-ओ-नज़र में हो रहमत-ए-मुतलक़
झुकाए सर मिरे मौला के रू-ब-रू रखना

वज़ाहतों के लिए बार बार जाना हो
इसी ख़याल से मुबहम सी गुफ़्तुगू रखना

ख़िज़ाँ के बाद चमन में बहार आने पर
रविश-रविश वही अफ़्साना-ए-नुमू रखना

सवाल ज़ीस्त का दुश्वार है बहुत 'आदिल'
कि आरज़ू नहीं रखना या आरज़ू रखना


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