क़ामत-ए-दिल-रुबा पर शबाब आ गया या सवा नेज़े पर आफ़्ताब आ गया जागी जागी उन आँखों का आलम न पूछ सामने एक जाम-ए-शराब आ गया इक निगाह-ए-मोहब्बत की तख़मीर में सब सिमट कर जहान-ए-ख़राब आ गया ये चले वो बढ़े वो जवाँ हो गए चंद लम्हों में यौम-उल-हिसाब आ गया झूम उठी एक अरमाँ-भरी ज़िंदगी जब हवाएँ चलीं जब सहाब आ गया आइए आइए इस तरफ़ वो 'नुशूर' शायर-ए-यादगार-ए-शबाब आ गया