सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था भँवर का काम साहिल कर रहा था वो समझा ही कहाँ उस मर्तबे को मैं उस को दुख में शामिल कर रहा था हमारी फ़त्ह थी मक़्तूल होना यही कोशिश तो क़ातिल कर रहा था कोई तो था मिरे ही क़ाफ़िले में जो मेरा काम मुश्किल कर रहा था वो ठुकरा कर गया इस दौर में जब मैं जो चाहूँ वो हासिल कर रहा था तिरी बातों में यूँ भी आ गया मैं भटकने का बहुत दिल कर रहा था कोई मुझ सा ही दीवाना था शायद जो वीराने में महफ़िल कर रहा था ये दिल ख़ुद-ग़र्ज़ दिल ग़म-ख़्वार तेरा ख़ुशी ग़म में भी हासिल कर रहा था समझता था मैं साज़िश आइने की मुझे मेरे मुक़ाबिल कर रहा था