कमरे की जब से तीरगी बढ़ती चली गई ज़ख़्मों से अपनी दोस्ती बढ़ती चली गई चारों तरफ़ से ख़ुद में लगाई गई थी आग चारों तरफ़ ही रौशनी बढ़ती चली गई मैं जितना तेरे जिस्म को पढ़ता चला गया ख़ुद से फिर उतनी आगही बढ़ती चली गई 'साजिद' हमारे गाँव में दरिया के बावजूद क्या राज़ है जो तिश्नगी बढ़ती चली गई