वक़्त के रंग में हर बार सुनें ग़ौर करें एक इक लम्हे की रफ़्तार सुनें ग़ौर करें मेरे हमराज़ ने दुनिया का चलन सीख लिया अब कई होंगे गिरफ़्तार सुनें ग़ौर करें क़स्र-ए-तहज़ीब का मे'मार सरकता है तभी चीख़ने लगती है दीवार सुनें ग़ौर करें मेरी जो बात ज़माने को बुरी लगने लगी हाँ वही साहब-ए-किरदार सुनें ग़ौर करें बे-हिसी वक़्त के आँगन में समर-बार हुई बे-भरम हो गई दस्तार सुनें ग़ौर करें 'आलम'-ए-शौक़ में शामिल है ज़माने की रमक़ साहब-ए-ज़ौक़ समझदार सुनें ग़ौर करें