कम-तर या बेशतर गए हम उस दर से ब-चश्म-ए-नम गए हम इक गुल न चुना हम उस चमन से ले अपना ही मुश्त-ए-पर गए हम बैज़े से निकालते ही सर हैफ़ यूँ क़ैद-ए-क़फ़स में पड़ गए हम बिन यार लगा न दिल किधर भी जितना कि इधर उधर गए हम क्या दूर से मुस्कुरा के सरका कल उस की नज़र जो पड़ गए हम दुनिया का व दीं का हम को क्या होश मस्त आए व बे-ख़बर गए हम उस जान-ए-अज़ीज़ ने न पूछा जीते हैं या कि मर गए हम कुछ काम न था हमें किसी से लेने दिल की ख़बर गए हम इतनी मुद्दत के बअ'द 'हसरत' कल रात जो उस के घर गए हम