कानों को है भाई हुई तक़रीर किसी की आँखों में समाई हुई तस्वीर किसी की कुछ इश्क़ में चलती नहीं तदबीर किसी की सर फोड़ जो रह जाए है तक़दीर किसी की हर ज़र्रे में है जल्वा हर इक क़तरे में है आब है अर्श पे छाई हुई तनवीर किसी की अंदाज़ बुतों के नहीं आते हैं नज़र में रहती है निगाहों में जो तस्वीर किसी की ख़त पढ़ के कहीं और बिगड़ बैठे न यारब याद आई है अबरू दम-ए-तहरीर किसी की ये गिर्या-ओ-ज़ारी दिल-ए-बेताब कहाँ तक रुस्वा कहीं हो जाए न तक़्सीर किसी की इक मुंतज़िर-ए-दीद की पथरा गईं आँखें ताख़ीर किसी की हुई ताज़ीर किसी की मैं फ़ख़्र से कहता हूँ मुझे तुम से है उल्फ़त बढ़ती है तिरे नाम से तौक़ीर किसी की रुख़ फेर मगर सर न हिले देख कि ज़ालिम अटकी है तिरी ज़ुल्फ़ में तक़दीर किसी की मेहमाँ है कोई दिन के, चले जाएँगे 'रहबर' बैठेंगे नहीं दाब के जागीर किसी की