कुछ न पूछो रू-ब-रू जा कर किसी के क्या हुआ टिकटिकी बँधने न पाई थी कि दिल चलता हुआ ले गई दिल को किसी की इक निगाह-ए-अव्वलीं मैं किसी के हुस्न पर यक-बारगी शैदा हुआ उस लब-ए-शीरीं पे मेरा एक बार आया जो नाम मैं ये समझा ख़ुश्तरी पहलू-ए-क़िस्मत वा हुआ हाल-ए-हिज्राँ पूछते क्या हो कि सूरत देख लो साफ़ ज़ाहिर है मरीज़-ए-ग़म गया-गुज़रा हुआ हूँ सरापा मजमा-ए-उम्मीद-ओ-यास ओ इंतिज़ार धीरे धीरे चल रहा है यक-नफ़स रुकता हुआ राह क्या सूझे मुझे दुनिया मिरी तारीक है है किसी ज़ुल्फ़-ए-सियह में दिल मिरा उलझा हुआ अक़्ल का था फेर अपनी जो उन्हें समझा था ग़ैर वो तो बिल्कुल जान-ए-जाँ हैं राज़ ये इफ़शा हुआ तुम मिरी तक़दीर में हो और फिर क्या चाहिए कौन सा मतलब रहा फिर जो नहीं पूरा हुआ मुझ को समझाया नहीं नासेह उधर मत जाइयो फिर कहोगे ''लुट गए हम, दिल हमारा क्या हुआ'' हम तो हैं मद्दाह उस के हम को सब मंज़ूर है जो हुआ उस ने किया, जो कुछ हुआ अच्छा हुआ उन को पाने से ग़रज़ थी कुछ न था दुनिया से बैर मिल गए वो हम को दुनिया ही में और अच्छा हुआ आशिक़ी रहबर से सीखो सर करो मंज़िल ब-ख़ैर उस का है ये रास्ता अच्छी तरह देखा हुआ