काँटों की भी ज़बाँ पे गुलिस्ताँ की बात है लब पर रक़ीब के ग़म-ए-जानाँ की बात है गुल की क़बा को देखा तो बुलबुल ने ये कहा अहल-ए-जुनूँ में चाक-गरेबाँ की बात है आरिज़ पे उन के ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ है आज क्यों शायद मरीज़-ए-इश्क़ के दरमाँ की बात है अज़्म-ए-जवाँ अगर है नया आशियाँ बना गुलशन में आज जश्न-ए-चराग़ाँ की बात है हैं जा-ए-अंदलीब यहाँ चंद बाल-ओ-पर ज़िंदाँ की बात अब है न दरबाँ की बात है होश-ओ-ख़िरद बहार में रुख़्सत हुए 'कमाल' दामन रफ़ू किया तो गरेबाँ की बात है