बरसात हो घटाएँ हो और मय-कशी न हो अरमाँ न हों शबाब न हो ज़िंदगी न हो पैमाना घूमता है जो आँखों के साथ साथ ज़ुल्फ़ों के साथ साथ घटा झूमती न हो शाम-ए-फ़िराक़ आँख से आँसू रवाँ रहें ऐ याद-ए-यार दर्द-ए-जिगर में कमी न हो मरने पे इख़्तियार न जीने पे इख़्तियार जब्र-ए-हयात उठाएँ मगर आह भी न हो हर दम लहू से सींचिए गुलशन को ऐ 'कमाल' रंगीनी-ए-बहार में कोई कमी न हो