काँटों की मअय्यत में बड़ी देर रहा है जिस शख़्स की बातों में गुलाबों का असर है मंज़िल अभी आगे है कि छोड़ आया हूँ पीछे मुद्दत से सफ़र में हूँ मुझे इतनी ख़बर है शोहरत की तलब है कि है इज़हार का चसका ये कसब-ए-सताइश है कि फिर कस्ब-ए-हुनर है तू बाला है रुत्बे में सो मैं मान रहा हूँ हालाँकि तिरी बात का पाँव है न सर है ऐ यार बता कुछ तो मोहब्बत की हक़ीक़त मकड़ी का ये जाला है कि फिर दाम-ए-नज़र है इख़्लास ही बाइ'स था तअ'ल्लुक़ का हमारे लेकिन वो मिरे हमदम-ए-देरीना किधर है मैं यार समझता हूँ ज़माना तुझे हम-राज़ तू एक ज़माने से इधर है न उधर है किस मोड़ पे ले आई है अब तेरी मोहब्बत जब तेरे बिछड़ने में नफ़ा है न ज़रर है 'जाज़िब' नहीं खिलते हैं बगूलों में समन तो और तू कि तमन्नाई-ए-ए'जाज़-ए-नज़र है