ख़ानक़ाह-ओ-दैर में जाते हैं हम ढूँढते जो हैं नहीं पाते हैं हम जब से उर्यानी हुआ अपना लिबास जामे से बाहर हुए जाते हैं हम और बढ़ता है उन्हें शौक़-ए-जफ़ा आँख में आँसू जो भर लाते हैं हम वो जफ़ा कर के नहीं होते ख़जिल याँ गिला करने से शरमाते हैं हम हम से बढ़ कर कोई दीवाना नहीं दिल से दीवाने को समझाते हैं हम