कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की अब हमें दे दो ये मिट्टी है हमारे काम की डूब दे दे बादा-ए-गुल-रंग में ज़ाहिद अगर देखिए रंगीनियाँ फिर जामा-ए-एहराम की अक्स-ए-अबरू देखते हैं बादा-ए-सर-जोश में ईद है साक़ी-परस्तों में हिलाल-ए-जाम की इब्तिदा-ए-इश्क़ है और बुझ रहा है दिल मिरा हो चली धीमी अभी से लौ चराग़-ए-शाम की आँख में आँसू हैं माथे पर अरक़ है मौत का ले ख़बर उम्र-ए-रवाँ अपने छलकते जाम की हो गई बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल बे-ज़ौक़-ओ-शुऊर शाइ'री जो थी मुरादिफ़ मा'नी-ए-इल्हाम की पुख़्तगी समझे हुए हैं जो तनासुब को फ़क़त चाहिए इस्लाह उन को इस ख़याल-ए-ख़ाम की है ये नाज़ुक फ़न जो शायान-ए-तही-मग़ज़ी नहीं दौर-ए-मज्लिस में ज़रूरत क्या है ख़ाली जाम की है 'अज़ीज़' आईना-ए-लफ़्ज़ी मुराआतुन-नज़ीर हुस्न-ए-मा'नी जब नहीं फिर शाइ'री किस काम की