काश सुनते वो पुर-असर बातें दिल से जो की थीं उम्र-भर बातें बे-सबब तेरे लब नहीं ख़ामोश कर रही है तिरी नज़र बातें कोई समझाए आ के नासेह को सुन सके कौन इस क़दर बातें उस के अफ़्साने बन गए लाखों मैं ने जो की थीं उम्र-भर बातें दम उलट जाएगा 'अज़ीज़' 'अज़ीज़' रह न ख़ामोश कुछ तो कर बातें