कर दिया ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सा परेशाँ मुझ को दश्त में छोड़ गया है दिल-ए-नादाँ मुझ को दाग़-ए-यारान-ए-वतन था जो दिल-ए-महज़ूँ में वो नज़र आया चराग़-ए-तह-ए-दामाँ मुझ को जाँ-कनी से कहीं अच्छा है मिरा मर जाना नीम-बिस्मिल न बना नावक-ए-मिज़्गाँ मुझ को जल्वा-ए-सुब्ह-ए-क़यामत का मज़ा देता है चाक-ए-दिल चाक-ए-जिगर चाक-ए-गरेबाँ मुझ को मुर्ग़-ए-दिल दाम में गेसू के उलझ कर न कहे हो मुबारक तुम्हें गुलशन तो ये ज़िंदाँ मुझ को जल्वा-ए-हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद दिखा कर दिलबर मिस्ल-ए-आईना किया आप ने हैराँ मुझ को अपना अपना ये मुक़द्दर है कहूँ क्या वाइ'ज़ महफ़िल-ए-वाज़ तुझे महफ़िल-ए-रिंदाँ मुझ को अपनी तन्हाई पे रोता हूँ बड़ी हसरत से अपना पहलू जो नज़र आता है वीराँ मुझ को गुंचा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर खिल के दिखा देते हैं चमन-ए-इश्क़ सनम का गुल-ए-ख़ंदाँ मुझ को मेहमाँ गोशा-ए-तुर्बत का मुझे होना है क्यूँ न मर्ग़ूब हो ये गोर-ए-ग़रीबाँ मुझ को मिन्नतें मौत की करता हूँ तो वो कहती है ज़िंदगी ने तो किया तेरा निगहबाँ मुझ को शेर-गोई नहीं सीखी है 'जमीला' मैं ने मेरी फ़ितरत ने किया साहब-ए-दीवाँ मुझ को