इम्तिहाँ के लिए जफ़ा कब तक इल्तिफ़ात-ए-सितम-नुमा कब तक ग़ैर है बेवफ़ा प तुम तो कहो है इरादा निबाह का कब तक जुर्म मालूम है ज़ुलेख़ा का तान-ए-दस्त-ए-ना-रसा कब तक मुझ पे आशिक़ नहीं है कुछ ज़ालिम सब्र आख़िर करे वफ़ा कब तक देखिए ख़ाक में मिलाती है निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा-सा कब तक कहीं आँखें दिखा चुको मुझ को जानिब-ए-ग़ैर देखना कब तक न मिलाएँगे वो न आएँगे जोश-ए-लब्बैक-ओ-मरहबा कब तक होश में आ तू मुझ में जान नहीं ग़फ़लत-ए-जुरअत-आज़मा कब तक ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी तू मुझे आज़माएगा कब तक तुम को ख़ू हो गई बुराई की दरगुज़र कीजिए भला कब तक मर चले अब तो उस सनम से मिलें 'मोमिन' अंदेशा-ए-ख़ुदा कब तक