कर गया क्या कोई इंतिक़ाल आदमी लोग कहते हैं था बा-कमाल आदमी अपनी रिफ़अत पे ख़ुद ही है दाल आदमी शान ये है कि है बे-मिसाल आदमी बैठ जाएगा थक-हार कर एक दिन और कुछ दिन करेगा धमाल आदमी सर पे होती नहीं जब ख़ुशी की रिदा ओढ़ लेता है कितने मलाल आदमी करते करते सवालात हल जिस्म के बन गया आज ख़ुद ही सवाल आदमी दूर कैसा है आया कहाँ ढूँडिए अब तो मिलते नहीं ख़ुश-ख़िसाल आदमी ऐश-गाहों से निकलो दिखाएँ तुम्हें हम ने देखे हैं ग़म से निढाल आदमी फ़िक्र उस को नहीं पर हक़ीक़त है ये हर घड़ी हो रहा पाएमाल आदमी ख़ाक है ख़ाक ही में है मिलना उसे फिर भी करता है क्या क्या मजाल आदमी हम परिंदों से 'अशहर' है क्या दुश्मनी हर क़दम पे बिछाता है जाल आदमी