कर के असीर-ए-ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मुझे ऐ दिल-नवाज़ तू ने ये क्या दे दिया मुझे जाना था इतनी जल्द तो आया था किस लिए एक एक पल है हिज्र का सब्र-आज़मा मुझे बुझने लगी है शम्-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू अब सूझता नहीं है कोई रास्ता मुझे आँखें थीं फ़र्श-ए-राह तुम्हारे लिए सदा तुम आस पास हो यहीं ऐसा लगा मुझे ये दर्द-ए-दिल है मेरे लिए अब वबाल-ए-जाँ मिलता नहीं कहीं कोई दर्द-आश्ना मुझे कश्ती-ए-दिल का सौंप दिया जिस को नज़्म-ओ-नस्क़ देता रहा फ़रेब वही नाख़ुदा मुझे रहज़न से बढ़ के उस का रवय्या था मेरे साथ पहली निगाह में जो लगा रहनुमा मुझे अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ कितना पड़ेगा और अभी जागना मुझे क्या ये जुनून-ए-शौक़ गुनाह-ए-अज़ीम है किस जुर्म की मिली है ये आख़िर सज़ा मुझे 'बर्क़ी' न हो उदास सर-ए-रहगुज़र है वो पैग़ाम दे गई है ये बाद-ए-सबा मुझे