कर के दिल को शिकार आँखों में घर करे है तू यार आँखों में चश्म-ए-बद दूर हो नज़र न कहीं है निपट ही बहार आँखों में और सब चेहरा-बाज़ियों के सिवा इश्वा है सद-हज़ार आँखों में क्या कहूँ कुछ कही नहीं जाती बातें हैं बे-शुमार आँखों में जिस घड़ी घूरते हो ग़ुस्सा से निकले पड़ता है प्यार आँखों में तीर-ए-मिज़्गाँ दिलों के पार हुए है ये गुज़र ओ गुज़ार आँखों में यार तेरे लिए ये गौहर-ए-अश्क थे बरा-ए-निसार आँखों में अश्क-ए-ख़ूनीं के ये नहीं क़तरे ये रहे हैं शरार आँखों में देखना टुक 'असर' से नज़रें मिला क्या हुए थे क़रार आँखों में