मैं वो आतिश-ए-नफ़स हूँ आग अभी ख़िर्मन-ए-बर्क़ में लगा दूँगा रूठो मुझ से न वो बला हूँ मैं रोनी सूरत को भी हँसा दूँगा तू उठाए जो ख़ंजर-ए-पुर-ख़म गर्दन अपनी वहीं झुका दूँगा आह से अर्श को हिला दूँगा कुंगर-ए-चर्ख़ को झुका दूँगा न चलो मुझ से तुम रक़ीबों चाल उँगलियों पर तुम्हें नचा दूँगा वक़्त रोने के आह-ए-सोज़ाँ से दामन-ए-अब्र को जला दूँगा आगे मेरे न शेख़ी मार ऐ शैख़ रात का माजरा सुना दूँगा आह को मेरी बे-असर न कहो मैं तमाशा अभी दिखा दूँगा तुम जो हर रोज़ कहते हो मर-मर एक दिन मर के भी दिखा दूँगा दूसरे को जो दोगे दिल में भी दिल के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दूँगा शैख़ चल तो शराब-ख़ाने में मैं तुझे आदमी बना दूँगा 'मशरिक़ी' दे अगर वो जाम-ए-शराब दिल से ग़म मैं अभी मिटा दूँगा