कर रहे हैं आप अपनी जुस्तुजू मैं और हवा एक-जा हो जाएँगे शायद कभू मैं और हवा आएगी फ़ुर्सत मयस्सर दोनों को शायद कभी कर ही लेंगे देर तक फिर गुफ़्तुगू मैं और हवा भर गई है धुंद ज़ेहनों में दयार-ए-ग़ैर की बे-सबब फिरते नहीं हैं कू-बकू मैं और हवा एक सा रहता कहाँ है मेरा और उस का मिज़ाज हैं मुलाएम और कभी हैं तुंद-ख़ुद मैं और हवा क्या बताऊँ किस तरह सींची है हम ने शाख़-शाख़ पेश अक्सर कर गए अपना लहू मैं और हवा जा-ब-जा सरगोशियाँ करने लगीं परछाइयाँ घर से बाहर जब कभी निकले हैं तू मैं और हवा दिल लरज़ उठता है अक्सर इस गुमाँ पर बे-तरह पेश हो जाएँगे इक दिन रू-ब-रू मैं और हवा बे-ख़बर अपने से हो कर लाएँगे अपनी ख़बर इस तरह से तय करेंगे दश्त-ए-हू मैं और हवा बाँट कर आपस में कूचे और गलियाँ शहर की तोड़ देंगे नफ़रतों का हर सुबू मैं और हवा सोचता हूँ देर से ला-हासिली की रेत पर करते हैं हर ख़्वाब क्यों नज़्र-ए-नुमू मैं और हवा इन्फ़िरादी सोच हम को कर गई तन्हा 'फ़रीद' हो गए बेगाना-ए-हर-रंग-ओ-बू मैं और हवा