हुस्न-ए-इम्काँ रंग-ए-रुख़ रंग-ए-बदन ज़द पर रहा क्या बताऊँ मैं तुझे क्या क्या सजन ज़द पर रहा अक़्ल वालों पर वहाँ खुलते हैं अज़-ख़ुद रास्ते जिस गली में इक मिरा दीवाना-पन ज़द पर रहा हर सुख़न को तोलता हूँ बोलता हूँ मुँह से फिर जाने क्यों फिर भी मिरा ज़ौक़-ए-सुख़न ज़द पर रहा हो रही है इस तरह तज्दीद हर इक ख़्वाब की जो बचा था आँख में अक्स-ए-कुहन ज़द पर रहा इश्क़ पर होने लगी हैं तोहमतों की यूरिशें हुस्न-ए-बे-परवा से चाक-ए-पैरहन ज़द पर रहा