कर सके दफ़्न न उस कूचे में अहबाब मुझे ख़ाक में दिल की कुदूरत ने दिया दाब मुझे हिज्र में पास न है ज़हर न ख़ंजर अफ़्सोस न दिए मौत के भी चर्ख़ ने अस्बाब मुझे क़ासिद आया है वहाँ से तो ज़रा थम ऐ होश बात तो करने दे उस से दिल-ए-बेताब मुझे नाम-ए-'तस्कीं' पे ये मज़मून-ए-तपिश ना-ज़ेबा था तख़ल्लुस जो सज़ा-वार तो बेताब मुझे