करम के बाब में अपनों से इब्तिदा किया कर ज़रा सी बात पे दिल को न यूँ बुरा किया कर नमाज़-ए-इश्क़ है टूटे दिलों की दिलदारी मिरे अज़ीज़ न इस को कभी क़ज़ा किया कर उजाले के लिए है चश्म ओ दिल का आईना बपा कभी किसी मज़लूम की अज़ा किया कर ब-नाम-ए-मज़्हब-ओ-मिल्लत ये ख़ूँ बहाना क्या हरी हरी वो करें तू ख़ुदा ख़ुदा किया कर बजा सही ये हया और ये एहतियात मगर कभी कभी तो मोहब्बत में हौसला किया कर नज़र में रख मिरे इज़हार की ज़रूरत को कभी तो नून का एलान भी रवा किया कर वो ऐब ढकता है तेरे सभी मजीद-'अख़्तर' सो तू भी दरगुज़र अहबाब की ख़ता किया कर