करम तेरा कि सोज़-ए-जावेदानी ले के आई हूँ मगर ये क्या कि मैं इक उम्र-ए-फ़ानी ले के आई हूँ ये किस काफ़िर की महफ़िल है कि जिस में नज़्र करने को मैं दिल की धड़कनें आँखों का पानी ले के आई हूँ ये दुनिया ये ख़ुलूस-ओ-इश्क़ के रंग-आफ़रीं नग़्मे बयाबाँ में गुलिस्ताँ की कहानी ले के आई हूँ भड़क कर शो'ला बन जाए कि बुझ कर राख हो जाए हवा की ज़द पे शम-ए-ज़िंदगानी ले के आई हूँ अगर चाहूँ ये दुनिया फूँक डालूँ अपने नग़्मों से कि मैं साँसों में शो'लों की रवानी ले के आई हूँ मिरा दिल भी है महसूसात का आतिश-कदा आख़िर अजब क्या है जो ज़ौक़-ए-शेर-ख़्वानी ले के आई हूँ ज़िया-अंदोज़ हूँ इक आसमानी नूर से 'नजमा' ज़मीं पर चाँद तारों की जवानी ले के आई हूँ