ये रंग-ओ-बू हैं कुछ दिन के नज़ारों का भरोसा क्या बहारें कल कहाँ होंगी बहारों का भरोसा क्या न इतराना कि है तुम को मयस्सर दामन-ए-साहिल किनारे टूट जाते हैं किनारों का भरोसा क्या हम अपनी ज़ात ही को अंजुमन तस्लीम करते हैं इदारे टूट जाते हैं इदारों का भरोसा क्या ज़माने में नहीं अंजाम अच्छा सर उठाने का सितारे टूट जाते हैं सितारों का भरोसा क्या 'नसीम' इस दर्जा फ़ख़्र अच्छा नहीं यारान-ए-महफ़िल पर सहारे टूट जाते हैं सहारों का भरोसा क्या