कर्ब-ए-हस्ती यूँ छुपाना चाहिए अश्क पी कर मुस्कुराना चाहिए मुस्तक़िल हँसने की आदत डाल कर जलने वालों को जलाना चाहिए आप मुंसिफ़ हैं तो कर दें फ़ैसला क्या किसी का दिल दुखाना चाहिए हाल पर जब बोझ बन जाए तो फिर अपना माज़ी भूल जाना चाहिए कर के इज़्हार-ए-तमन्ना फिर कोई दोस्तों को आज़माना चाहिए बिल-यक़ीं आहों में होता है असर लेकिन इस को इक ज़माना चाहिए नित-नए इल्ज़ाम सर रख कर मिरे क़त्ल का मेरे बहाना चाहिए सब्र इक अच्छी अलामत है मगर ज़ुल्म से पंजा लड़ाना चाहिए बार हैं जिस पर फ़क़त मक्र-ओ-फ़रेब ऐसी कश्ती डूब जाना चाहिए मस्लहत की ज़ुल्म ने पहनी नक़ाब रुख़ से ये पर्दा हटाना चाहिए मंज़िलों की गर है तुम को जुस्तुजू ख़्वाब पलकों पर सजाना चाहिए पत्थरों का शहर है 'बेबाक' ये अब अलग बस्ती बसाना चाहिए