कर्ब-ए-हिज्राँ ज़ि-बस है क्या कीजे हम को तेरी हवस है क्या कीजे ने दिमाग़-ए-विसाल है हम को कुछ उन्हें पेश-ओ-पस है क्या कीजे हिज्र में उस निगार-ए-ताबाँ के लम्हा लम्हा बरस है क्या कीजे निगहत-ए-गुल के आबगीनों में मर्ग-ए-शीरीं का रस है क्या कीजे गरचे दरवेश है 'अज़ीम' मगर उस को तुझ से भी मस है क्या कीजे