कार-ए-दुनिया के तक़ाज़ों को निभाने में कटी ज़िंदगी रेत की दीवार उठाने में कटी अब भी रौशन है तिरे दिल में मोहब्बत का दिया रात फिर शम-ए-यक़ीं-साज़ जलाने में कटी तिश्नगी वो थी कोई कार-ए-वफ़ा हो न सका उम्र-ए-बे-माया फ़क़त प्यास बुझाने में कटी साअत-ए-वस्ल जो देखे थे ख़द-ओ-ख़ाल तिरे हिज्र की शब वही तस्वीर बनाने में कटी एक अंगुश्त-ए-शहादत कि अभी बाक़ी थी वो भी इस बार तिरी सम्त उठाने में कटी