करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे जो होगी उम्र भर की राह तो दम भर में आवेंगे अगर हाथों से उस शीरीं-अदा के ज़ब्ह होंगे हम तो शर्बत के से घूँट आब-ए-दम-ए-ख़ंजर में आवेंगे यही गर जोश-ए-गिर्या है तो बह कर साथ अश्कों के हज़ारों पारा-ए-दिल मेरे चश्म-ए-तर में आवेंगे गर इस क़ैद-ए-बला से अब की छूटेंगे तो फिर हरगिज़ न हम दाम-ए-फ़रेब-ए-शोख़-ए-ग़ारत-गर में आवेंगे न जाते गरचे मर जाते जो हम मालूम कर जाते कि इतना तंग जा कर कूचा-ए-दिलबर में आवेंगे गरेबाँ-चाक लाखों हाथ से उस मेहर-ए-तलअत के ब-रंग-ए-सुब्ह-ए-महशर अरसा-ए-महशर में आवेंगे जो सरगरदानी अपनी तेरे दीवाने दिखाएँगे तो फिर क्या क्या बगूले दश्त के चक्कर में आवेंगे 'ज़फ़र' अपना करिश्मा गर दिखाया चश्म-ए-साक़ी ने तमाशे जाम-ए-जम के सब नज़र साग़र में आवेंगे