क़रीब-ए-दिल ख़रोश-ए-सद-जहाँ हम जो तुम सुन लो तुम्हारी दास्ताँ हम किसी को चाहने की चाह में गुम जिए बन कर निगाह-ए-तिश्नगाँ हम हर इक ठोकर की ज़द में लाख मंज़िल हमें ढूँडो नसीब-ए-गुमरहाँ हम हमें समझो निगाह-ए-नाज़ वालो लबों पर काँपता हर्फ़-ए-बयाँ हम बुझी सम्तों की इस नगरी में 'अमजद' उभरते आफ़्ताबों की कमाँ हम