पतझड़ में ख़िज़ाओं में तुझे ढूँड रही हूँ मैं ज़र्द फ़ज़ाओं में तुझे ढूँड रही हूँ भरने हैं कई रंग मुझे अपने दिए में क्यूँ तेज़ हवाओं में तुझे ढूँड रही हूँ निकली हूँ किसी धुन में किसी याद को ले कर और उजड़ी अदाओं में तुझे ढूँड रही हूँ मैं ख़ाक-नशीं आज भी तकती हूँ फ़लक को मुद्दत से ख़लाओं में तुझे ढूँड रही हूँ जीवन मुझे मुंसिफ़ ने अता की हैं सज़ाएँ मैं आज सज़ाओं में तुझे ढूँड रही हूँ तुझ से मिले बिछड़े हुए लम्हों की क़सम है गुम-गश्ता सदाओं में तुझे ढूँड रही हूँ 'शाहीन' अभी तक ये मिरे हाथ हैं ख़ाली बे-मेहर दुआओं में तुझे ढूँड रही हूँ