करीह चेहरे पे रंगीं नक़ाब है गोया फ़रेब-ए-ज़िंदगी आज इक अज़ाब है गोया खुली हुई ग़म-ए-दिल की किताब है गोया इक आईना मिरी चश्म-ए-पुर-आब है गोया बने हैं चेहरे निशान-ए-सवाल जिस्मों पर शिकस्त-ओ-रेख़्त ही उन का जवाब है गोया निहाल-ए-दर्द की शाख़ों में फूल खिलने लगे ख़याल-ए-यार भी फ़स्ल-ए-गुलाब है गोया मुझे है 'बर्क़' फ़रावानी-ए-अलम हासिल ये रिज़्क़ दिल को बग़ैर-ए-हिसाब है गोया