क़रीने ज़ीस्त में थे सोख़्ता-जानी से पहले बहुत आबाद थे हम ख़ाना-वीरानी से पहले बदलते मौसमों के साथ ग़म भी आए लेकिन ग़मों की शान अलग थी इस फ़रावानी से पहले इन्ही ख़ुश-ज़ौक़ लोगों में बहुत चर्चे रहे हैं हमारी ख़ुश-लिबासी के भी उर्यानी से पहले जो यार-ए-मेहरबाँ नालाँ है अब मेरी तलब से उसे शिकवा था मेरी तंग-दामानी से पहले बड़ा ज़ीरक बहुत दाना तुझे हम जानते थे दिल-ए-नादाँ तिरी इस हश्र-सामानी से पहले ये पर्दा है किसी शय का वगर्ना हम ने यारो बड़े तूफ़ाँ उठाए हैं तन-आसानी से पहले यहाँ इक बाग़ था जिस में चहकते थे परिंदे यहीं इस क़र्या-ए-जाँ की बयाबानी से पहले ये महजूबी ये ख़ामोशी हमेशा से नहीं है लब-ए-गोया थे हम भी अपनी हैरानी से पहले