करिश्मा-साज़-ओ-सरापा-बहार है कि नहीं शबाब-ओ-हुस्न-ए-ग़ज़ल बा-वक़ार है कि नहीं ख़िज़ाँ का दौर सही ये बताओ अहल-ए-चमन यक़ीन-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है कि नहीं बजा कि मै-कदा वीराँ है मस्जिदें आबाद रईस-ए-शहर भी परहेज़-गार है कि नहीं ज़बाँ ख़तीब की मज़मूँ रईस-ए-शहर का है नमाज़ियों पे ये राज़ आश्कार है कि नहीं निगाह चाहिए तहलील-ओ-तज्ज़िये के लिए ख़िज़ाँ का दौर नवेद-ए-बहार है कि नहीं हमारा माज़ी-ओ-हाज़िर भी इक मुअ'म्मा है बहार थी कि नहीं थी बहार है कि नहीं ग़ज़ल तो कहते हैं सब हम मगर ये देखते हैं वो कर्ब-ए-अस्र की आईना-दार है कि नहीं हिजाब मान-ए-जल्वा सही नवेद भी है ख़िज़ाँ नक़ाब-ए-निगार-ए-बहार है कि नहीं मदार बख़्शिश-ओ-पुर्सिश का है नियत पे 'नईम' उमीद-ए-रहमत-ए-परवरदिगार है कि नहीं