कभी सरसर है कभी बाद-ए-सबा है साक़ी ज़िंदगी सिलसिला-ए-बीम-ओ-रजा है साक़ी न कुदूरत है किसी से न गिला है साक़ी मैं ने ख़ुद अपने मुक़द्दर को लिखा है साक़ी अपने माहौल में शामिल हूँ मैं औरों की तरह मेरे जीने का मगर तौर जुदा है साक़ी मेरा चेहरा मिरे जज़्बात का अक्कास नहीं मेरा दिल देख जहाँ हश्र बपा है साक़ी कुछ कहें अहल-ए-ख़िरद फ़िक्र नहीं है मुझ को मेरे आ'माल ख़ुदा देख रहा है साक़ी मुफ़्ती-ओ-मोहतसिब-ओ-वाइज़-ओ-क़ाज़ी-ओ-फ़क़ीह तेरी आँखों से कहीं कोई बचा है साक़ी वाक़िफ़-ए-राज़ है मय-ख़ाना-ए-हस्ती का 'नईम' उस के होंटों पे मगर क़ुफ़्ल-ए-वफ़ा है साक़ी