करते हैं अगर मुझ से वो प्यार तो आ जाएँ फिर आ के चले जाएँ इक बार तो आ जाएँ है वक़्त ये रुख़्सत का बख़्शिश का तलाफ़ी का समझें न जो गर उस को बेकार तो आ जाएँ इक दीद की ख़्वाहिश पे अटका है ये दम मेरा कम करना हो मेरा कुछ आज़ार तो आ जाएँ जाँ देने को राज़ी हूँ ऐ पैक-ए-अजल लेकिन कुछ देर तो रुक जाओ सरकार तो आ जाएँ जाएँ न 'ख़लिश' ले कर हम सू-ए-अदम हसरत मक़्सूद हो उन को भी दीदार तो आ जाएँ