करूँ बयान अगर उस की बेवफ़ाई का ज़बाँ से नाम न ले कोई आश्नाई का न इशवा-साज़ी न ग़म्ज़े न नाज़ फूलों में है सादा हुस्न में अंदाज़ दिलरुबाई का बदन से जान निकलती है ये ख़बर दे कर कभी है वस्ल का मौसम कभी जुदाई का हुआ हलाक जो हाबील तो किया किस ने शुरूअ'-ए-दहर से क़ातिल है भाई भाई का हबाब सत्ह पे आते ही फूट जाते हैं जिगर-ख़राश है अंजाम ख़ुद-नुमाई का जहाँ में कोई किसी की ख़बर नहीं लेता सुनाऊँ हाल किसे अपनी बे-नवाई का दिखा के आइना कह दो कि मैं मुक़ाबिल भी बुतों के मुँह से हो दा'वा अगर ख़ुदाई का