कारवाँ आते हैं और आ के चले जाते हैं एक हम हैं कि उसी सम्त तके जाते हैं दिन गुज़रते हैं मह-ओ-साल गुज़र जाते हैं वक़्त के पाँव भी चल चल के थके जाते हैं जाने आवाज़-ए-जरस है कि सदा-ए-सहरा एक आवाज़ सी सुनते हैं सुने जाते हैं ग़म ने करवट कभी बदली थी मगर आज तलक दिल के आग़ोश में काँटे से चुभे जाते हैं